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मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं - अब्दुल मन्नान तरज़ी कविता - Darsaal

मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं

मुद्दआ'-ओ-आरज़ू शौक़-ए-तमन्ना आप हैं

किस को किस को मैं बताऊँ मेरे क्या क्या आप हैं

मय-कदा साग़र सुराही और सहबा आप हैं

जो किसी सूरत न उतरे ऐसा नश्शा आप हैं

जिस पे करती है मोहब्बत मेरी दा'वा आप हैं

जिस का दिल शाम-ओ-सहर पढ़ता वज़ीफ़ा आप हैं

ऐ मिरी जान-ए-ग़ज़ल शहर-ए-वफ़ा-ओ-शौक़ में

मेरी अज़रा और सलमा मेरी नूरा आप हैं

आप हैं ऐ जान-ए-जाँ मेरे सुख़न की आबरू

सच तो ये है कि ग़ज़ल का मिस्रा मिस्रा आप हैं

आप की ज़ुल्फ़ों का मैं ही तो नहीं तन्हा असीर

कर गई बरबाद जो ज़ाहिद की तक़्वा आप हैं

जज़्बा-ए-पाकीज़ा मेरे दिल का हैं कुछ आप ही

मेरी चश्म-ए-शौक़ का सारा तमाशा आप हैं

अहद-ए-पीरी में ग़ज़ल 'तरज़ी' मियाँ ऐसी जवाँ

इश्क़ में किस के भला इतने भी रुस्वा आप हैं

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