Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_f4a1240bdc7eac0e8bde935164ca86cf, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो - अब्दुल मन्नान तरज़ी कविता - Darsaal

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

गुज़र-बसर का कोई भी तो आसरा दे दो

तुम्हारी बज़्म से जाता है ना-मुराद कोई

सफ़र-ब-ख़ैर की जान-ए-वफ़ा दुआ दे दो

अता पे हर्फ़ न आ जाए माँगने से मिरे

ख़ुदा हो मेरे तो फिर हस्ब-ए-मुद्दआ दे दो

मिटा दो मेरी निगाहों से तुम नुक़ूश तमाम

वगर्ना दूसरा मुझ को इक आइना दे दो

फ़रेब-ए-शरह-ए-तमन्ना भी खा ले अब ये दिल

लबों को जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ दे दो

जुनूँ-नवाज़-ओ-जुनूँ-ख़ेज़-ओ-सद-जुनूँ-सामाँ

तुम अपने जल्वों को ऐसी कोई अदा दे दो

अदू को शिकवा-ए-लज़्ज़त कोई न रह जाए

मिरे लहू को कुछ ऐसा ही ज़ाइक़ा दे दो

ग़ज़ल की आबरू तुम हो ग़ज़ल मुझे महबूब

शऊर-ए-फ़िक्र को उस्लूब-ए-ख़ुश-नुमा दे दो

ये दिल तो दुश्मन-ए-जानी है एक मुद्दत से

जो ग़म-नवाज़ हो ऐसा ग़म-आश्ना दे दो

लिबास-ए-कोहना ग़ज़ल का उतार कर 'तरज़ी'

ब-फ़ैज़ तब-ए-रसा इक नई क़बा दे दो

(1445) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Meri Nigah Ko Jalwon Ka Hausla De Do In Hindi By Famous Poet Abdul Mannan Tarzi. Meri Nigah Ko Jalwon Ka Hausla De Do is written by Abdul Mannan Tarzi. Complete Poem Meri Nigah Ko Jalwon Ka Hausla De Do in Hindi by Abdul Mannan Tarzi. Download free Meri Nigah Ko Jalwon Ka Hausla De Do Poem for Youth in PDF. Meri Nigah Ko Jalwon Ka Hausla De Do is a Poem on Inspiration for young students. Share Meri Nigah Ko Jalwon Ka Hausla De Do with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.