मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे
मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे
ऐसा न करेंगे कभी ऐसा न करेंगे
वो ज़ख़्म भी पहुंचाएँ करें चारागरी भी
ये भूल कभी मेरे मसीहा न करेंगे
फूटेगी सहर दीदा-ए-गिर्यां से हमारे
ख़ूँ-रेज़ तबस्सुम का उजाला न करेंगे
आएगा ज़बाँ पर न कभी हर्फ़-ए-शिकायत
हम ज़िक्र ग़ज़ल में भी तुम्हारा न करेंगे
शबनम की सिफ़त शो'ला-मिज़ाजों को नहीं दें
ये उस की नज़ाकत को गवारा न करेंगे
जाएँगे सर-ए-दार भी एहराम ही बाँधे
हम शेवा-ए-हक़-गोई को रुस्वा न करेंगे
हम ज़ख़्मों की शिद्दत को बयाँ कर के भी 'तरज़ी'
क़ातिल ही का ख़ुद अपने क़द ऊँचा न करेंगे
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