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मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे - अब्दुल मन्नान तरज़ी कविता - Darsaal

मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे

मर जाएँगे पिंदार का सौदा न करेंगे

ऐसा न करेंगे कभी ऐसा न करेंगे

वो ज़ख़्म भी पहुंचाएँ करें चारागरी भी

ये भूल कभी मेरे मसीहा न करेंगे

फूटेगी सहर दीदा-ए-गिर्यां से हमारे

ख़ूँ-रेज़ तबस्सुम का उजाला न करेंगे

आएगा ज़बाँ पर न कभी हर्फ़-ए-शिकायत

हम ज़िक्र ग़ज़ल में भी तुम्हारा न करेंगे

शबनम की सिफ़त शो'ला-मिज़ाजों को नहीं दें

ये उस की नज़ाकत को गवारा न करेंगे

जाएँगे सर-ए-दार भी एहराम ही बाँधे

हम शेवा-ए-हक़-गोई को रुस्वा न करेंगे

हम ज़ख़्मों की शिद्दत को बयाँ कर के भी 'तरज़ी'

क़ातिल ही का ख़ुद अपने क़द ऊँचा न करेंगे

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