जब भी गुलशन में चली ठंडी हवा
जब भी गुलशन में चली ठंडी हवा
और पागल कर गई ठंडी हवा
पहले तो ऐसी न थी ठंडी हवा
हो गई क्यूँ दिल-जली ठंडी हवा
सुन के उस की बात ग़ुंचे हँस पड़े
कान में क्या कह गई ठंडी हवा
उन के होंटों का जो कर आई तवाफ़
पा गई कुछ नग़्मगी ठंडी हवा
है दिल-ए-नाकाम से अच्छी नहीं
छेड़-ख़ानी भी तिरी ठंडी हवा
सच बता मेरी तरह क्या उन की भी
बे-क़रारी थी बढ़ी ठंडी हवा
ज़ख़्म-ए-दिल जिस से हुआ कुछ मुंदमिल
कूचा-ए-जानाँ की थी ठंडी हवा
देख लेते हम भी तेरा कुछ कमाल
खिलती गर दिल की कली ठंडी हवा
इक परेशाँ दिल का कह देगी सलाम
मिलना उन से गर कभी ठंडी हवा
'तरज़ी' ऐसा है असीर-ए-ग़म तिरा
हाल पर जिस के हँसी ठंडी हवा
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