बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब
बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब
फ़ज़ा खिल उठी तो सरापा तुम्हारा बहुत याद आया
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बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब
फ़ज़ा खिल उठी तो सरापा तुम्हारा बहुत याद आया
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