Sharab Poetry of Abdul Hamid Adam
नाम | अब्दुल हमीद अदम |
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अंग्रेज़ी नाम | Abdul Hamid Adam |
जन्म की तारीख | 1910 |
मौत की तिथि | 1981 |
ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना
साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
मय-कदा है यहाँ सकूँ से बैठ
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस
जेब ख़ाली है 'अदम' मय क़र्ज़ पर मिलती नहीं
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
आँखों से पिलाते रहो साग़र में न डालो
ज़ुल्फ़-ए-बरहम सँभाल कर चलिए
वो सूरज इतना नज़दीक आ रहा है
वो बातें तिरी वो फ़साने तिरे
वो अहद-ए-जवानी वो ख़राबात का आलम
उन को अहद-ए-शबाब में देखा
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं
तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा
सो के जब वो निगार उठता है
शब की बेदारियाँ नहीं अच्छी
साक़ी शराब ला कि तबीअ'त उदास है
रक़्स करता हूँ जाम पीता हूँ
मुस्कुरा कर ख़िताब करते हो
मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है
मिरा इख़्लास भी इक वज्ह-ए-दिल-आज़ारी है
मतलब मुआ'मलात का कुछ पा गया हूँ मैं
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए
मय-कदा था चाँदनी थी मैं न था
लहरा के झूम झूम के ला मुस्कुरा के ला
ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया