ज़ख़्म दिल के अगर सिए होते
ज़ख़्म दिल के अगर सिए होते
अहल-ए-दिल किस तरह जिए होते
वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
काश थोड़ी सी हम पिए होते
आरज़ू मुतमइन तो हो जाती
और भी कुछ सितम किए होते
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
हौसले भी 'अदम' दिए होते
(1821) Peoples Rate This