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वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं

वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं

आदमी बे-नज़ीर होते हैं

देखने वाला इक नहीं मिलता

आँख वाले कसीर होते हैं

जिन को दौलत हक़ीर लगती है

उफ़! वो कितने अमीर होते हैं

जिन को क़ुदरत ने हुस्न बख़्शा हो

क़ुदरतन कुछ शरीर होते हैं

ज़िंदगी के हसीन तरकश में

कितने बे-रहम तीर होते हैं

वो परिंदे जो आँख रखते हैं

सब से पहले असीर होते हैं

फूल दामन में चंद रख लीजे

रास्ते में फ़क़ीर होते हैं

है ख़ुशी भी अजीब शय लेकिन

ग़म बड़े दिल-पज़ीर होते हैं

ऐ 'अदम' एहतियात लोगों से

लोग मुनकिर-नकीर होते हैं

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