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वो बातें तिरी वो फ़साने तिरे - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

वो बातें तिरी वो फ़साने तिरे

वो बातें तिरी वो फ़साने तिरे

शगुफ़्ता शगुफ़्ता बहाने तिरे

बस इक दाग़-ए-सज्दा मिरी काएनात

जबीनें तिरी आस्ताने तिरे

मज़ालिम तिरे आफ़ियत-आफ़रीं

मरासिम सुहाने सुहाने तिरे

फ़क़ीरों की झोली न होगी तही

हैं भरपूर जब तक ख़ज़ाने तिरे

दिलों को जराहत का लुत्फ़ आ गया

लगे हैं कुछ ऐसे निशाने तिरे

असीरों की दौलत असीरी का ग़म

नए दाम तेरे पुराने तिरे

बस इक ज़ख़्म-ए-नज़्ज़ारा हिस्सा मिरा

बहारें तिरी आशियाने तिरे

फ़क़ीरों का जमघट घड़ी-दो-घड़ी

शराबें तिरी बादा-ख़ाने तिरे

ज़मीर-ए-सदफ़ में किरन का मक़ाम

अनोखे अनोखे ठिकाने तिरे

बहार ओ ख़िज़ाँ कम-निगाहों के वहम

बुरे या भले सब ज़माने तिरे

'अदम' भी है तेरा हिकायत-कदा

कहाँ तक गए हैं फ़साने तिरे

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