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मुझ से चुनाँ-चुनीं न करो मैं नशे मैं हूँ - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

मुझ से चुनाँ-चुनीं न करो मैं नशे मैं हूँ

मुझ से चुनाँ-चुनीं न करो मैं नशे मैं हूँ

मैं जो कहूँ नहीं न करो मैं नशे में हूँ

इंसाँ नशे में हो तो वो छुपता नहीं कभी

हर-चंद तुम यक़ीं न करो मैं नशे में हूँ

ये वक़्त है फ़राख़-दिली के सुलूक का

तंग अपनी आस्तीं न करो मैं नशे में हूँ

बे-इख़्तियार चूम न लूँ मैं कहीं इन्हें

आँखों को ख़शमगीं न करो मैं नशे में हूँ

हर-चंद मेरे हक़ में है ये रहमत-ए-ख़ुदा

आँचल मिरे क़रीं न करो मैं नशे में हूँ

नश्शे में सुर्ख़ रंग तही-अज़-ख़तर नहीं?

होंटों को अहमरीं न करो मैं नशे में हूँ

देखो मैं कह रहा हूँ तुम्हें पय-ब-पय 'अदम'

मुझ को बहुत हज़ीं न करो मैं नशे में हूँ

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