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गो तिरी ज़ुल्फ़ों का ज़िंदानी हूँ मैं - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

गो तिरी ज़ुल्फ़ों का ज़िंदानी हूँ मैं

गो तिरी ज़ुल्फ़ों का ज़िंदानी हूँ मैं

भूल मत जाना कि सैलानी हूँ मैं

ज़िंदगी की क़ैद कोई क़ैद है

सूखते तालाब का पानी हूँ मैं

चाँदनी रातों में यारों के बग़ैर

चाँदनी रातों की वीरानी हूँ मैं

जिस क़दर मौजूद हूँ मफ़क़ूद हूँ

जिस क़दर ग़ाएब हूँ लाफ़ानी हूँ मैं

मुझ को तन्हाई में सुनना बैठ कर

मुतरिब-ए-लम्हात-ए-वजदानी हूँ मैं

जिस क़दर करता हूँ अंदेशा 'अदम'

उस क़दर तस्वीर-ए-हैरानी हूँ मैं

अक़्ल से क्या काम मुझ नाचीज़ का

एक मा'मूली सी नादानी हूँ मैं

हूँ अगर तो हूँ भी क्या इस के सिवा

क़ीमती विर्से की अर्ज़ानी हूँ मैं

दिल की धड़कन बढ़ती जाती है 'अदम'

किस हसीं के ज़ेर-ए-निगरानी हूँ मैं

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