Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a4d5ce872271facb7f98bd4a1d362531, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है

ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है

मगर मिरे दिन गुज़र रहे हैं मगर मिरा वक़्त टल रहा है

वो अब्र आया वो रंग बरसे वो कैफ़ जागा वो जाम खनके

चमन में ये कौन आ गया है तमाम मौसम बदल रहा है

मिरी जवानी के गर्म लम्हों पे डाल दे गेसुओं का साया

ये दोपहर कुछ तो मो'तदिल हो तमाम माहौल जल रहा है

ये भीनी भीनी सी मस्त ख़ुश्बू ये हल्की हल्की सी दिल-नशीं बू

यहीं कहीं तेरी ज़ुल्फ़ के पास कोई परवाना जल रहा है

न देख ओ मह-जबीं मिरी सम्त इतनी मस्ती-भरी नज़र से

मुझे ये महसूस हो रहा है शराब का दौर चल रहा है

'अदम' ख़राबात की सहर है कि बारगाह-ए-रुमूज़-ए-हस्ती

इधर भी सूरज निकल रहा है उधर भी सूरज निकल रहा है

(1445) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Gham-e-mohabbat Sata Raha Hai Gham-e-zamana Masal Raha Hai In Hindi By Famous Poet Abdul Hamid Adam. Gham-e-mohabbat Sata Raha Hai Gham-e-zamana Masal Raha Hai is written by Abdul Hamid Adam. Complete Poem Gham-e-mohabbat Sata Raha Hai Gham-e-zamana Masal Raha Hai in Hindi by Abdul Hamid Adam. Download free Gham-e-mohabbat Sata Raha Hai Gham-e-zamana Masal Raha Hai Poem for Youth in PDF. Gham-e-mohabbat Sata Raha Hai Gham-e-zamana Masal Raha Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Gham-e-mohabbat Sata Raha Hai Gham-e-zamana Masal Raha Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.