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दुआएँ दे के जो दुश्नाम लेते रहते हैं - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

दुआएँ दे के जो दुश्नाम लेते रहते हैं

दुआएँ दे के जो दुश्नाम लेते रहते हैं

वो जाम देते हैं और जाम लेते रहते हैं

ख़फ़ा न हो कि हमारा क़ुसूर कोई नहीं

बिला-इरादा तिरा नाम लेते रहते हैं

हुजूम-ए-ग़म में तिरा नाम भूल भी जाए

तो फिर भी जैसे तिरा नाम लेते रहते हैं

ये नाम ऐसा है बिल्कुल ही गर न लें उस को

तो फिर भी हम सहर-ओ-शाम लेते रहते हैं

तिरी निगाह का क्या क़र्ज़ हम उतारेंगे

तिरी नज़र से बड़े काम लेते रहते हैं

मैं वो मुसाफ़िर-ए-रौशन-ख़याल हूँ यारो

जो रास्ते में भी आराम लेते रहते हैं

ग़म-ए-हयात की तालीम-ओ-तर्बियत के लिए

तिरी निगाह के अहकाम लेते रहते हैं

पड़ी है यूँ हमें बद-नामियों की चाट 'अदम'

कि मुस्कुरा के हर इल्ज़ाम लेते रहते हैं

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