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दिल डूब न जाएँ प्यासों के तकलीफ़ ज़रा फ़रमा देना - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

दिल डूब न जाएँ प्यासों के तकलीफ़ ज़रा फ़रमा देना

दिल डूब न जाएँ प्यासों के तकलीफ़ ज़रा फ़रमा देना

ऐ दोस्त किसी मय-ख़ाने से कुछ ज़ीस्त का पानी ला देना

तूफ़ान-ए-हवादिस से प्यारे क्यूँ इतना परेशाँ होता है

आसार अगर अच्छे न हुए इक साग़र-ए-मय छलका देना

ज़ुल्मात के झुरमुट वैसे तो बिजली की चमक से डरते हैं

पर बात अगर कुछ बढ़ जाए तारों से सुबू टकरा देना

हम हश्र में आते तो उन की तश्हीर का बाइ'स हो जाते

तश्हीर से बचने वालों को ये बात ज़रा समझा देना

मैं पैरहन-ए-हस्ती में बहुत उर्यां सा दिखाई देता हूँ

ऐ मौत मिरी उर्यानी को मल्बूस-ए-'अदम' पहना देना

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