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भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें

भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें

हम को तो कुछ याद नहीं है आप ही कुछ इरशाद करें

पहले-पहल जब आप का जोबन इतना शहर-आशोब न था

इक मुश्ताक़ से सादा-दिल इंसाँ की परस्तिश याद करें

आप से मुमकिन है दिल-जूई यज़्दाँ की ये रीत नहीं

जिस को सुन कर चुप रहना है उस से क्या फ़रियाद करें

इश्क़ ने सौंपा है काम अपना अब तो निभाना ही होगा

मैं भी कुछ कोशिश करता हूँ आप भी कुछ इमदाद करें

जुज़्व-ए-तबीअ'त बन जाएँ तो जौर करम हो जाते हैं

लुत्फ़ न अब राइज फ़रमाएँ सिर्फ़ सितम ईजाद करें

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