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भूले से कभी ले जो कोई नाम हमारा - अब्दुल हमीद अदम कविता - Darsaal

भूले से कभी ले जो कोई नाम हमारा

भूले से कभी ले जो कोई नाम हमारा

मर जाए ख़ुशी से दिल-ए-नाकाम हमारा

ले जाती है उस सम्त हमें गर्दिश-ए-दौराँ

ऐ दोस्त ख़राबात से क्या काम हमारा

कर लेते हैं तख़्लीक़ कोई वज्ह-ए-अज़िय्यत

भाता नहीं ख़ुद हम को भी आराम हमारा

ऐ गर्दिश-ए-दौराँ ये कोई सोच की रुत है

कम-बख़्त अभी दौर में है जाम हमारा

इस बार तो आया था इधर क़ासिद-ए-जाँ ख़ुद

सरकार को पहुँचा नहीं पैग़ाम हमारा

पहुँचाई है तकलीफ़ बहुत पहले ही तुझ को

ऐ राह-नुमा हाथ न अब थाम हमारा

ऐ क़ाफ़िला-ए-होश गँवा वक़्त न अपना

पड़ता नहीं कुछ ठीक अभी गाम हमारा

देखा है हरम तेरा मगर हाए-रे ज़ाहिद

महका हुआ वो कूचा-ए-असनाम हमारा

ग़िलमान भी जन्नत के बड़ी चीज़ हैं लेकिन

तौबा मिरी वो साक़ी-ए-गुलफ़ाम हमारा

गुल नौहा-कुनाँ ओ सनम-ए-दस्त-ब-सीना

अल्लाह ग़नी! लम्हा-ए-अंजाम हमारा

कर बैठे हैं हम भूल के तौबा जो सहर को

शीशे को तआ'क़ुब है सर-ए-शाम हमारा

मय पीना 'अदम' और क़दम चूमना उन के

है शग़्ल यही अब सहर-ओ-शाम हमारा

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