Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_e3298c262d1cde3b75a13087ee6c2c66, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-दिलबरी सिमट आ निगाह-ए-मजाज़ में - अब्दुल अलीम आसि कविता - Darsaal

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-दिलबरी सिमट आ निगाह-ए-मजाज़ में

कभी ऐ हक़ीक़त-ए-दिलबरी सिमट आ निगाह-ए-मजाज़ में

कि तड़प रहे हैं हज़ारों दिल रह-ए-इश्क़-ए-सीना-गुदाज़ में

ये कशिश ये जज़्ब ये मो'जिज़ा निगह-ए-यतीम-ए-हिजाज़ में

कि पड़े थे सैकड़ों ग़ज़नवी भी जहाँ लिबास-ए-मजाज़ में

फ़क़त एक नुक़्ता गुनाह का सर-ए-चर्ख़ अब्र-ए-सियह बना

नज़र आईं मुझ को जो वुसअ'तें तिरी अफ़्व-ए-बंदा-नवाज़ में

ये नहीं कि हम में नहीं हैं वो ये नहीं कि ऐन हमी हैं वो

मगर इक हक़ीक़त-ए-मानवी है निहाँ लिबास-ए-मजाज़ में

न अना ग़लत था न हक़-ए-ग़लत मगर इतनी सी ग़लती हुई

ये जो राज़ था उसे चाहिए था छुपाना पर्दा-ए-राज़ में

जिसे पी के पीर बने जवाँ जिसे पी के चीख़ उठे जवाँ

ये वो मय है साक़ी-ए-मै-कशाँ तिरी चश्म-ए-बादा-नवाज़ में

(1368) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kabhi Ai Haqiqat-e-dilbari SimaT Aa Nigah-e-majaz Mein In Hindi By Famous Poet Abdul Aleem Aasi. Kabhi Ai Haqiqat-e-dilbari SimaT Aa Nigah-e-majaz Mein is written by Abdul Aleem Aasi. Complete Poem Kabhi Ai Haqiqat-e-dilbari SimaT Aa Nigah-e-majaz Mein in Hindi by Abdul Aleem Aasi. Download free Kabhi Ai Haqiqat-e-dilbari SimaT Aa Nigah-e-majaz Mein Poem for Youth in PDF. Kabhi Ai Haqiqat-e-dilbari SimaT Aa Nigah-e-majaz Mein is a Poem on Inspiration for young students. Share Kabhi Ai Haqiqat-e-dilbari SimaT Aa Nigah-e-majaz Mein with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.