अब आ के क़लम के पहलू में सो जाती हैं बे-कैफ़ी से
अब आ के क़लम के पहलू में सो जाती हैं बे-कैफ़ी से
मिसरों की शोख़ हसीनाएँ सौ बार जो रूठती मनती थीं
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अब आ के क़लम के पहलू में सो जाती हैं बे-कैफ़ी से
मिसरों की शोख़ हसीनाएँ सौ बार जो रूठती मनती थीं
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