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मुतज़ाद ज़ाविए - अब्दुल अहद साज़ कविता - Darsaal

मुतज़ाद ज़ाविए

और बिसात-ए-ख़याल बे-पायाँ

और मुअय्यन हदूद-ए-शरह-ओ-बयां

तेज़-रफ़्तार गर्दिश-ए-हालात

और आहिस्तगी-ए-उम्र रवाँ

अज्नबिय्यत का मुस्तक़िल इक बोझ

और शनासाइयों का बार-ए-गिराँ

अक़्ल की ख़ामी नारसी दिल की

और तसव्वुर-शिकन हक़ीक़त-ए-जाँ

मुख़्तलिफ़ हर वजूद पेश-ए-नज़र

और इम्कान-ए-वहदत-ए-इम्काँ

फ़िक्र उक़दा-कुशाइयों पे मुसिर

और सर-रिश्ते ही का ख़ुद फ़ुक़दाँ

इंतिहा सिलसिलों की ना-मालूम

और हर लम्हा सिलसिला-ए-जुम्बाँ

मुतवातिर मराहिल-ए-तालीम

और मुसलसल मदारिज-ए-निस्याँ

शोबा-हाय-ए-ख़्याल बे-तमईज़

और बहर-ए-शनाख़्त मोहर-ओ-निशाँ

चार जानिब सराहतों का हुजूम

और बहर-ए-रुमूज़ बे-पायाँ

सैल-ए-बैरूं रवाँ ब-तर्ज़-ए-दिगर

और जू-ए-अंदरूँ अलग सी रवाँ

एक खोई हुई फ़ज़ाए-हयात

और एहसास-ओ-फ़िक्र सब ग़लताँ

और साँसों की रहगुज़र पे हुजूम

और आँखों की रहगुज़र वीराँ

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