ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब
सलाम मेरे रफ़ीक़ों को हम-नशीनों को
सपाट चेहरों को बे-मेहर-ओ-लुत्फ़ सीनों को
कोई हबीब-ए-मसर्रत न कोई मूनिस-ए-ग़म
न दिल में जोश न यारा-ए-दर्द सीनों को
कोई फ़रोग़ न कोई नुमू कि यारों ने
रखा है कर के मुसत्तह तमाम ज़ीनों को
मिला न हैफ़! ग़ुल-आराई का मिज़ाज कभी
मिरे ख़ुलूस के ''ख़िर्मन के ख़ोशा-चीनों को''
फ़लक ने ज़ीनत-ए-निस्याँ बना के छोड़ दिया
रुसूम-ए-लुत्फ़ को दिल-जूई के क़रीनों को
ग़रज़ की तुंद हवाओं ने कर दिया बंजर
वफ़ा की किश्त को ईसार की ज़मीनों को
शिकस्ता कर दिया बदली नज़र के तूफ़ान ने
ख़ुद-ए'तिमादी के ढाले हुए सफ़ीनों को
नज़र में कज-निगही लब पे मस्लहत-गोई
ख़ुतूत-ए-रुख ने उभारा है दिल के कीनों को
ख़िलाफ़-ए-वज़अ हो भूले से गर ये शेर-ए-'अनीस'
सुनाए 'साज़' कोई मेरे हम-नशीनों को
''ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब चाहिए हर दम!
'अनीस' ठेस न लग जाए आबगीनों को!
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