शाम ढले
चर्च-गेट के उस तरफ़
बीखा बहराम का कुआँ
क्रॉस-मैदान के फ़ुट-पाथ पर बने
बरसों पुराने बेंचों पर बैठे हुए
बरसों पुराने पारसी
सफ़ेद लाम्बा कोट
सियाह क़दीम कुलाह
ख़ामोश और गम्भीर
खोई खोई नज़रें जमाए
जैसे पुराने बम्बई की रूह
आ निकली हो
आज की शाम का कोई मंज़र देखने