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सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा - अब्दुल अहद साज़ कविता - Darsaal

सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा

सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा

ज़ेहन ओ दिल सेहर-ए-दास्तान-ज़दा

फ़िक्र ओ तहक़ीक़ रेहन-ए-मोहर-ओ-सनद

तालिब-ए-इल्म इमतिहान-ज़दा

ज़ात की फ़िक्र है क़यास-आलूद

ज़िंदगी का यक़ीं गुमान-ज़दा

रात पहचान दे गई सब को

सुब्ह चेहरे मिले निशान-ज़दा

ताक में है न कि तआक़ुब में

तू शिकारी है पर मचान-ज़दा

उन की फ़िक्र-ए-रसा फ़लक-पैमा

अपनी सोचें हैं आसमान-ज़दा

ख़ुद से रिश्ते नहीं रहे लेकिन

लोग अब भी हैं ख़ानदान-ज़दा

रात है लोग घर में बैठे हैं

दफ़्तर-आलूदा ओ दुकान-ज़दा

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