Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_9ec09adf640b75a033eb6013c66bc66a, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई - अब्दुल अहद साज़ कविता - Darsaal

हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई

हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई

ज़रा जो लौ तिरी शम-ए-बदन की थर्राई

न जाने किस से बिछड़ने के राग-रंग हैं सब

ये ज़िंदगी है कि फ़ुर्क़त की बज़्म-आराई

सुकूत-ए-बहर में किस ग़म का राज़ पिन्हाँ था

बस एक मौज उठी और आँख भर आई

ये सम्त सम्त तख़ातुब उफ़ुक़ उफ़ुक़ तक़रीर

तिरा कलाम है मेरा रफ़ीक़-ए-तन्हाई

ख़िरद की रह जो चला मैं तो दिल ने मुझ से कहा

अज़ीज़-ए-मन ''ब-सलामत-रवी ओ बाज़-आई''

उठाए सूर सराफ़ील देखता ही रहा

बशर के हाथ निज़ाम-ए-क़यामत-आराई

किया था जी का ज़ियाँ हम ने इक ग़ज़ल भर को

हज़ार शेर कहे हो सकी न भरपाई

(1316) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hisar-e-did Mein Jaga Tilism-e-binai In Hindi By Famous Poet Abdul Ahad Saaz. Hisar-e-did Mein Jaga Tilism-e-binai is written by Abdul Ahad Saaz. Complete Poem Hisar-e-did Mein Jaga Tilism-e-binai in Hindi by Abdul Ahad Saaz. Download free Hisar-e-did Mein Jaga Tilism-e-binai Poem for Youth in PDF. Hisar-e-did Mein Jaga Tilism-e-binai is a Poem on Inspiration for young students. Share Hisar-e-did Mein Jaga Tilism-e-binai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.