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पागल - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

पागल

वो आया शहर की तरफ़

इक उस की चाप की खनक

क़याम-ए-रोज़-ए-इश्क़ की पुकार थी

कि बर्ग-ओ-बार-ए-ख़ाक का फ़िशार थी

वो आया शहर की तरफ़

लपक के ईंट की तरफ़

वो इस तरह बढ़ा कि जैसे नान-ए-ख़ुश्क पर कोई

सग-ए-गुरसना गिर पड़े

वो गालियों भरी ज़बाँ गली गली छलक पड़ी

हर एक जेब उस की उँगलियों से तार तार थी

कि उस की थूथनी से फूटती गमक

क़ियाम-ए-रोज़-ए-इश्क़ की पुकार थी

वो गालियों भरी ज़बाँ मिरा लिबास गंदगी से भर गई

न जाने कितने लोग

उस के दस्त-ए-दश्ना-दार से गुज़र गए

हयात पार कर गए

वो बे-हुनर सुबुक-तनी से डर गया

सब उस की रह से हट गए

तो उस ने अपनी रूह की बरहनगी

ज़मीन-ए-माह की तरफ़ उछाल दी

कि ये हुनर उसी का था

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Pagal In Hindi By Famous Poet Abbas Tabish. Pagal is written by Abbas Tabish. Complete Poem Pagal in Hindi by Abbas Tabish. Download free Pagal Poem for Youth in PDF. Pagal is a Poem on Inspiration for young students. Share Pagal with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.