Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_8293e8c9aec44b8960860385a3bfb59b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

हवा की शाख़ से बू-ए-विसाल बाँधते हैं

हमारे बस में कहाँ ज़ीस्त को सुख़न करना

ये क़ाफ़िया फ़क़त अहल-ए-कमाल बाँधते हैं

ये अहद-ए-जैब-तराशां को अब हुआ मा'लूम

यहाँ के लोग गिरह में सवाल बाँधते हैं

वो ख़ूब जानते हैं हम दुआ-निहादों को

हमारे साथ ब-वक़्त-ए-ज़वाल बाँधते हैं

सभी को शौक़-ए-असीरी है अपनी अपनी जगह

वो हम को और हम उन का ख़याल बाँधते हैं

तुम्हें पता हो कि हम साहिलों के पर्वर्दा

मोहब्बतों में भी मज़बूत जाल बाँधते हैं

फिर इस के बा'द कहीं भी वो जा नहीं सकता

जिसे भी बाँधते हैं हम कमाल बाँधते हैं

(1746) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ye Hum Jo Hijr Mein Us Ka KHayal Bandhte Hain In Hindi By Famous Poet Abbas Tabish. Ye Hum Jo Hijr Mein Us Ka KHayal Bandhte Hain is written by Abbas Tabish. Complete Poem Ye Hum Jo Hijr Mein Us Ka KHayal Bandhte Hain in Hindi by Abbas Tabish. Download free Ye Hum Jo Hijr Mein Us Ka KHayal Bandhte Hain Poem for Youth in PDF. Ye Hum Jo Hijr Mein Us Ka KHayal Bandhte Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Ye Hum Jo Hijr Mein Us Ka KHayal Bandhte Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.