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ये देख मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिरे आगे - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

ये देख मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिरे आगे

ये देख मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिरे आगे

आगे भी कहाँ जाता है रस्ता मिरे आगे

ऐ तिश्ना-लबी तू ने कहाँ ला के डुबोया

इस बार तो दरिया भी नहीं था मिरे आगे

ऐसे नहीं मानूँगा मैं हस्ती का तवाज़ुन

तक़्तीअ' किया जाए ये मिस्रा मिरे आगे

ऐ क़ामत-ए-दिल-दार-ए-गुज़िश्ता की मुआ'फ़ी

पहले कोई मेआ'र नहीं था मिरे आगे

क्यूँकर सुख़न आग़ाज़ किया जाए कि वो आँख

ला रखती है अज्दाद का लिक्खा मिरे आगे

हैरत है कि देती हैं मुझे ताना-ए-वहशत

तरतीब से रक्खी हुई अश्या मिरे आगे

मैं जानता हूँ उस के सभी भेद सभी भाव

दुनिया ने कभी रक़्स किया था मिरे आगे

मैं इश्क़ के आदाब ज़रा सीख लूँ पहले

बैठेगी अदब से यही दुनिया मिरे आगे

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