वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता
वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता
समझ तो आता है लेकिन नज़र नहीं आता
अगर ये तुम हो तो साबित करो कि ये तुम हो
गया हुआ तो कोई लौट कर नहीं आता
ये दिल भी कैसा शजर है कि जिस की शाख़ों पर
परिंदे आते हैं लेकिन समर नहीं आता
ये जम्अ' ख़र्च ज़बानी है उस के बारे में
कोई भी शख़्स उसे देख कर नहीं आता
हमारी ख़ाक पे अंधी हवा का पहरा है
उसे ख़बर है यहाँ कूज़ा-गर नहीं आता
ये बात सच है कि इस को भुला दिया मैं ने
मगर यक़ीं मुझे इस बात पर नहीं आता
नज़र जमाए रखूँगा मैं चाँद पर 'ताबिश'
कि जब तलक ये परिंदा उतर नहीं आता
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