उस का ख़याल ख़्वाब के दर से निकल गया
उस का ख़याल ख़्वाब के दर से निकल गया
फिर मैं भी अपने दीदा-ए-तर से निकल गया
पलकें भी बह गईं ख़स-ओ-ख़ाशाक की तरह
मैं अपने साहिलों के असर से निकल गया
तन्हाई से थी मेरी मुलाक़ात आख़िरी
रोया और इस के बा'द मैं घर से निकल गया
जब शम्-ए-इंतिज़ार उठा ली मुंडेर से
दस्त-ए-हवा भी हल्क़ा-ए-दर से निकल गया
रस्ते में आँख थी सग-ए-मामूर की तरह
दिल में जो चोर था वो किधर से निकल गया
अब ले ले मुझ को अपनी हथेली की ओट में
मेरा सितारा बुर्ज-ए-सफ़र से निकल गया
मेरे ही साथ घर में नज़र-बंद था तो फिर
तेरा ख़याल कौन से दर से निकल गया
(1684) Peoples Rate This