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टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है

टूट जाने में खिलौनों की तरह होता है

आदमी इश्क़ में बच्चों की तरह होता है

इस लिए मुझ को पसंद आता है सहरा का सुकूत

इस का नश्शा तिरी बातों की तरह होता है

हम जिसे इश्क़ में देते हैं ख़ुदा का मंसब

पहले पहले हमें लोगों की तरह होता है

जिस से बनना हो तअ'ल्लुक़ वही ज़ालिम पहले

ग़ैर होता है न अपनों की तरह होता है

चाँदनी-रात में सड़कों पे क़दम मत रखना

शहर जागे हुए नागों की तरह होता है

बस यही देखने को जागते हैं शहर के लोग

आसमाँ कब तिरी आँखों की तरह होता है

उस से कहना कि वो सावन में न घर से निकले

हाफ़िज़ा इश्क़ का साँपों की तरह होता है

उस की आँखों में उमड आते हैं आँसू 'ताबिश'

वो जुदा चाहने वालों की तरह होता है

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