शाख़ पर फूल फ़लक पर कोई तारा भी नहीं
शाख़ पर फूल फ़लक पर कोई तारा भी नहीं
मैं भी तन्हा हूँ बहुत कोई तुम्हारा भी नहीं
एक तो मुड़ के न जाने की अज़िय्यत थी बहुत
और उस पर ये सितम कोई पुकारा भी नहीं
कह रहा था कि मोहब्बत में तकल्लुम कैसा
मैं जो चौंका तो कहाँ इज़्न-ए-इशारा भी नहीं
उम्र-ए-मा-बा'द अगर तेरे अलावा कुछ है
फिर तो मैं अब भी नहीं और दोबारा भी नहीं
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