साँस के शोर को झंकार न समझा जाए
साँस के शोर को झंकार न समझा जाए
हम को अंदर से गिरफ़्तार न समझा जाए
उस को रस्ते से हटाने का ये मतलब तो नहीं
किसी दीवार को दीवार न समझा जाए
मैं किसी और हवाले से उसे देखता हूँ
मुझ को दुनिया का तरफ़-दार न समझा जाए
ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी
बैठ जाता हूँ अगर बार न समझा जाए
उस को आदत है घने पेड़ में सो जाने की
चाँद को दीदा-ए-बेदार न समझा जाए
अपनी बातों पे वो क़ाएम नहीं रहता 'ताबिश'
उस के इंकार को इंकार न समझा जाए
(1979) Peoples Rate This