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परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया

परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया

वो क्या कहें जिन्हें हिजरत ने घर से दूर किया

यही बहुत है कि उस अहद-ए-बे-पयम्बर में

कहीं चराग़ कहीं ख़्वाब ने ज़ुहूर किया

ये मेरा ख़ाक में मिलना बसा ग़नीमत है

कि मैं ने इज्ज़ की ख़ातिर बहुत ग़ुरूर किया

फ़लक से फेंक के देखा कि टूटने का नहीं

गिरा के अपनी निगाहों से चूर चूर किया

ग़ुबार-ए-दर-ब-दरी जिस ने कर दिया मुझ को

मुसाफ़िरों को उसी धूप ने खजूर किया

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