Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_89678cf8299954021f37f671e1c26a33, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं

मुसाफ़िरत में शब-ए-वग़ा तक पहुँच गए हैं

ये लोग अपनी अबद-सरा तक पहुँच गए हैं

अब इस से अगला सफ़र हमारा लहू करेगा

कि हम मदीने से कर्बला तक पहुँच गए हैं

अगर मुबारज़-तलब नहीं थे तो किस लिए हम

चराग़ ले कर दर-ए-हवा तक पहुँच गए हैं

गुलाबों और गर्दनों से अंदाज़ा हो रहा है

कि हम किसी मौसम-ए-जज़ा तक पहुँच गए हैं

तिरी मोहब्बत में गुमरही का अजब नशा था

कि तुझ तक आते हुए ख़ुदा तक पहुँच गए हैं

बता रही है ये ख़ुश्क पत्तों की तेज़ बारिश

हम अपने मौसम की इब्तिदा तक पहुँच गए हैं

हमें भी शुनवाई का यक़ीं हो चला है 'ताबिश'

कि हम भी तहरीक-ए-इलतिवा तक पहुँच गए हैं

(1503) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Musafirat Mein Shab-e-wagha Tak Pahunch Gae Hain In Hindi By Famous Poet Abbas Tabish. Musafirat Mein Shab-e-wagha Tak Pahunch Gae Hain is written by Abbas Tabish. Complete Poem Musafirat Mein Shab-e-wagha Tak Pahunch Gae Hain in Hindi by Abbas Tabish. Download free Musafirat Mein Shab-e-wagha Tak Pahunch Gae Hain Poem for Youth in PDF. Musafirat Mein Shab-e-wagha Tak Pahunch Gae Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Musafirat Mein Shab-e-wagha Tak Pahunch Gae Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.