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मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं - अब्बास ताबिश कविता - Darsaal

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

हँस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं

इस लिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता

जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं

मेरी आँखों से बहा करती है उन की ख़ुश्बू

रफ़्तगाँ ख़्वाब में आते हैं चले जाते हैं

शादी-ए-मर्ग का माहौल बना रहता है

आप आते हैं रुलाते हैं चले जाते हैं

कब तुम्हें इश्क़ पे मजबूर किया है हम ने

हम तो बस याद दिलाते हैं चले जाते हैं

आप को कौन तमाशाई समझता है यहाँ

आप तो आग लगाते हैं चले जाते हैं

हाथ पत्थर को बढ़ाऊँ तो सगान-ए-दुनिया

हैरती बन के दिखाते हैं चले जाते हैं

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