मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है
मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है
मगर ये दिल कि सैलानी बहुत है
हमारे पाँव उल्टे हैं सो हम को
पलट जाने में आसानी बहुत है
सितारे चोर आँखों से न देखें
ज़मीं पर मेरी निगरानी बहुत है
अभी सूखी नहीं मिट्टी की आँखें
अभी दरियाओं में पानी बहुत है
अजब सी शर्त है ये ज़िंदगी भी
जो मनवाई है कम मानी बहुत है
ज़रूरत ही नहीं दुश्मन की 'ताबिश'
मुझे मेरी तन-आसानी बहुत है
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