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गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए - अब्बास रिज़वी कविता - Darsaal

गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए

गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए

सफ़र तमाम हुआ और हम-सफ़र भी गए

उसी नज़र के लिए बे-क़रार रहते थे

उसी निगाह की बे-ताबियों से डर भी गए

हमारी राह में साया कहीं नहीं था मगर

किसी शजर ने पुकारा तो हम ठहर भी गए

ये सैल-ए-अश्क है बर्बाद कर के छोड़ेगा

ये घर न पाओगे दरिया अगर उतर भी गए

सहर हुई तो ये उक़्दा भी ताएरों पे खुला

कि आशियाँ ही नहीं अब के बाल-ओ-पर भी गए

बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग

कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए

शजर के साथ कोई बर्ग-ए-ज़र्द भी न रहा

हवा चली तो बहारों के नौहागर भी गए

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