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मौत ने मुस्कुरा के पूछा है - अब्बास दाना कविता - Darsaal

मौत ने मुस्कुरा के पूछा है

मौत ने मुस्कुरा के पूछा है

ज़िंदगी का मिज़ाज कैसा है

उस की आँखों में मेरी ग़ज़लें हैं

मेरी ग़ज़लों में उस का चेहरा है

उस से पूछो अज़ाब रस्तों का

जिस का साथी सफ़र में बिछड़ा है

चाँदनी सिर्फ़ है फ़रेब-ए-नज़र

चाँद के घर में भी अंधेरा है

इश्क़ में भी मज़ा है जीने का

ग़म उठाने का गर सलीक़ा है

छोड़ ज़ख़्मों पे तब्सिरा करना

अब क़लम से लहू टपकता है

रौशनी की ज़बान में 'दाना'

वो चराग़ों से बात करता है

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