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बेवफ़ाई उस ने की मेरी वफ़ा अपनी जगह - अब्बास दाना कविता - Darsaal

बेवफ़ाई उस ने की मेरी वफ़ा अपनी जगह

बेवफ़ाई उस ने की मेरी वफ़ा अपनी जगह

ख़ून-ए-दिल अपनी जगह रंग-ए-हिना अपनी जगह

कितने चेहरे आए अपना नूर खो कर चल दिए

है मगर रौशन अभी तक आइना अपनी जगह

ज़िंदगी ने उस को साहिल से सदाएँ दीं बहुत

वक़्त का दरिया मगर बहता रहा अपनी जगह

उस की महफ़िल से मुझे अब कोई निस्बत ही नहीं

है मिरी तन्हाइयों का सिलसिला अपनी जगह

हम चराग़ों से करेंगे दोस्ती की बात अब

ये अँधेरों ने किया है फ़ैसला अपनी जगह

तो समुंदर और मेरी ज़ात इक क़तरा सही

तेरी रहमत हर तरफ़ मेरी दुआ अपनी जगह

अब तो मुझ को भी सदा देते हैं 'दाना' कह के लोग

ज़िंदगी रहने दे अपना मशवरा अपनी जगह

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