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किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना - अब्बास अली ख़ान बेखुद कविता - Darsaal

किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना

किसी से इश्क़ करना और इस को बा-ख़बर करना

है अपने मतलब-ए-दुश्वार को दुश्वार-तर करना

नहीं है मौत पर कुछ इख़्तियार ऐ वा-ए-मजबूरी

उम्मीद-ए-मर्ग में मुश्किल बसर करना मगर करना

जो पर थे माया-ए-पर्वाज़ में वज्ह-ए-गिराँबारी

ग़ुरूर-ए-बाल-ओ-पर करना तो मुझ को देख कर करना

जफ़ा कर शौक़ से तू ज़ब्त पर मेरे न जा हरगिज़

शिकायत क्या मुझे ये काम है जब उम्र भर करना

जफ़ा उन की वफ़ा-परवर वफ़ा मेरी जफ़ा-परवर

वो उन को उम्र-भर करना ये मुझ को उम्र-भर करना

सर-ए-रह पूछते हैं हाल क्या कहिए कि मुश्किल है

बयान-ए-दर्द-ए-दिल करना और इस को मुख़्तसर करना

तवज्जोह चारा-गर की बाइस-ए-तकलीफ़ है 'बेख़ुद'

इज़ाफ़ा है मुसीबत में दवाओं का असर करना

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