हो सितम कैसा भी अब हालात की शमशीर का
हो सितम कैसा भी अब हालात की शमशीर का
वक़्त बदलेगा किसी दिन रुख़ मिरी तस्वीर का
जान-लेवा है तुम्हारा बे-नियाज़ी का चलन
हश्र देखे ही बनेगा अब दिल-ए-दिल-गीर का
बैठती है कौन सी करवट ये बाज़ी इश्क़ की
गर्दिशों के हाथ में है फ़ैसला तक़दीर का
कौन बाँधेगा मिरी बिखरी हुई उम्मीद को
खुल रहा है अब तो हर हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
लुत्फ़ लेते हो कमाँ से छोड़ कर जिस को अब आप
काश कोई मुझ से पूछे क्या हुआ उस तीर का
रेख़्ता से इश्क़ 'आज़िम'? वो भी ऐसे दौर में
देखना क्या हाल होता है तिरी तहरीर का
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