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एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी - आज़िम कोहली कविता - Darsaal

एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी

एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी

इक दिल सीने में टूटा सा और फ़ितरत में दिलदारी भी

मस्त उमंगों के झोंके और फ़ाक़ा मस्ती का आलम

हसरत की तेज़ हवाएँ भी उम्मीद की आतिश-बारी भी

दिल पर खोले उड़ने के लिए उड़ने का मगर इम्कान कहाँ

रोकें पैरों की ज़ंजीरें पिंजरे की चार-दिवारी भी

देखा न तुझे ऐ रब हम ने हाँ दुनिया तेरी देखी है

सड़कों पर भूके बच्चे भी कोठे पर अब्ला नारी भी

बेहाल न हो यूँ नादाँ दिल हर हाल में जीना है लाज़िम

है रस्ते में आसानी भी मजबूरी भी दुश्वारी भी

इक खेल मुसलसल गर्दिश का देखा है हम ने गुलशन में

फूलों का खिल कर मुरझाना और कलियों की किलकारी भी

मंज़िल पे न पहुँचा जब कोई इल्ज़ाम उसी पर क्यूँ आए

रह-रव के भटकने में है कुछ रहबर की ज़िम्मे-दारी भी

'आज़िम' तेरी बर्बादी में सब ने मिल-जुल कर काम किया

कुछ खेल लकीरों का भी है कुछ वक़्त की कार-गुज़ारी भी

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