दूर है मंज़िल तो क्या रस्ता तो है
दूर है मंज़िल तो क्या रस्ता तो है
इक नज़र उस ने मुझे देखा तो है
चाँद हाथों में नहीं तो क्या हुआ
आसमाँ पर ही सही दिखता तो है
ख़ुश अगर ग़ैरों में है तो ख़ुश रहे
वो कहीं भी हो चलो अच्छा तो है
कुछ नहीं है और तो ग़म ही सही
इस भरी दुनिया में कुछ अपना तो है
आज वो यूँ ही नहीं मुझ से ख़फ़ा
कुछ गिला तो है कोई शिकवा तो है
किया भरोसा उस के वअ'दे का मगर
दिल के ख़ुश रखने को इक वअ'दा तो है
उस ने रक्खा है तकल्लुफ़ का भरम
अब अदावत पर कोई पर्दा तो है
आ रहा है वो भी आख़िर राह पर
सुन के मेरा ज़िक्र कुछ कहता तो है
दिल नहीं 'आज़िम' चलो जाँ ही सही
ख़ैर उस ने मुझ से कुछ माँगा तो है
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