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उल्फ़तों का ख़ुदा नहीं हूँ मैं - अातिश इंदौरी कविता - Darsaal

उल्फ़तों का ख़ुदा नहीं हूँ मैं

उल्फ़तों का ख़ुदा नहीं हूँ मैं

रंज-ओ-ग़म से जुदा नहीं हूँ मैं

एक अर्सा हुआ गए उस को

अब तो उस का पता नहीं हूँ मैं

कलयुगी सोच से हूँ प्रदूषित

कोई ताज़ा हवा नहीं हूँ मैं

ख़र्चों के बोझ ने कमर तोड़ी

शौक़ से कुइ झुका नहीं हूँ मैं

बेवफ़ा बा-वफ़ा नहीं होगा

इश्क़ की कीमिया नहीं हूँ मैं

चंद सिक्के हैं लोगों की क़ीमत

शुक्र है कि बिका नहीं हूँ मैं

धर्म और ज़ात की जकड़ ऐसी

पर तो हैं पर उड़ा नहीं हूँ मैं

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