उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे
जफ़ा भी करते नहीं वो कभी जफ़ा की तरह
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वो मेरे क़ल्ब को छेदेगा कब गुमान में था
ये सारी बातें हैं दर-हक़ीक़त हमारे अख़्लाक़ के मुनाफ़ी
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
मुझे भी इक सितमगर के करम से
तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
ज़िंदगी गुज़री मिरी ख़ुश्क शजर की सूरत
आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं
कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला