तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली
मिरी वफ़ाओं का मुझ को कोई सिला न मिला
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तुम्हें ज़ेबा नहीं हरगिज़ सिले की आरज़ू रखना
लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे
दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
ये मय-ख़ाना है मय-ख़ाना तक़द्दुस उस का लाज़िम है
मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने
वो मेरे क़ल्ब को छेदेगा कब गुमान में था
सितम को उन का करम कहें हम जफ़ा को मेहर-ओ-वफ़ा कहें हम
जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
ज़िंदगी गुज़री मिरी ख़ुश्क शजर की सूरत
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने