ख़ूगर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार था इतना 'आतिश'
दर्द भी माँगा तो पहले से सिवा माँगा था
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कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला
आप की हस्ती में ही मस्तूर हो जाता हूँ मैं
मुझे भी इक सितमगर के करम से
लाख पर्दों में गो निहाँ हम थे
अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने
गिला मुझ से था या मेरी वफ़ा से
जो चाहते हो बदलना मिज़ाज-ए-तूफ़ाँ को
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
हर्फ़-ए-शिकवा न लब पे लाओ तुम
तुम्हें तो अपनी जफ़ाओं की ख़ूब दाद मिली