मिरी राख में थीं कहीं कहीं मेरे एक ख़्वाब की किर्चियाँ
मिरी राख में थीं कहीं कहीं मेरे एक ख़्वाब की किर्चियाँ
मेरे जिस्म-ओ-जाँ में छुपा हुआ तिरी क़ुर्बतों का ख़याल था
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मिरी राख में थीं कहीं कहीं मेरे एक ख़्वाब की किर्चियाँ
मेरे जिस्म-ओ-जाँ में छुपा हुआ तिरी क़ुर्बतों का ख़याल था
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