Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_a6ec1682227d50d51c410dcf8807ccf1, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
काग़ज़ क़लम दवात के अंदर रुक जाता है - अस्नाथ कंवल कविता - Darsaal

काग़ज़ क़लम दवात के अंदर रुक जाता है

काग़ज़ क़लम दवात के अंदर रुक जाता है

जो लम्हा इस ज़ात के अंदर रुक जाता है

सूरज दिन भर ज़हर उगलता रहता है

चाँद का ज़ोम भी रात के अंदर रुक जाता है

पहले साँस जमा देता है होंटों पर

फिर वो अपनी घात के अंदर रुक जाता है

निकल नहीं सकता धरती का बंजर-पन

जो क़तरा बरसात के अंदर रुक जाता है

हर्फ़ का दीप हवा से कैसे उलझेगा

ये नुक़्ता हर बात के अंदर रुक जाता है

हिज्र का मौसम ख़ामोशी और रात का डर

यादों की बारात के अंदर रुक जाता है

(1586) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kaghaz Qalam Dawat Ke Andar Ruk Jata Hai In Hindi By Famous Poet Aasnath Kanwal. Kaghaz Qalam Dawat Ke Andar Ruk Jata Hai is written by Aasnath Kanwal. Complete Poem Kaghaz Qalam Dawat Ke Andar Ruk Jata Hai in Hindi by Aasnath Kanwal. Download free Kaghaz Qalam Dawat Ke Andar Ruk Jata Hai Poem for Youth in PDF. Kaghaz Qalam Dawat Ke Andar Ruk Jata Hai is a Poem on Inspiration for young students. Share Kaghaz Qalam Dawat Ke Andar Ruk Jata Hai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.