ये कहते हैं सभी इस दौर में हर काम मुमकिन है
मैं ये कहता हूँ ये लेकिन दोबारा हो नहीं सकता
हरा हो सकता है सूखा हुआ इक पेड़ मुमकिन है
मगर शादी-शुदा हरगिज़ कँवारा हो नहीं सकता
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
हाथ में पापड़ लिए बैठा था मैं
अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को
कहानी इश्क़-ओ-मोहब्बत की ख़त्म पर आई
मैं ने कहा गधे से मियाँ कुछ पढ़ो लिखो
दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
रेट इतने बढ़े हैं जूतों के
नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते
जब हटाई उस ने चेहरे से नक़ाब
बैल क्या चीज़ है गधा क्या है
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
मुशायरों में हवा हूट जो मुसलसल मैं