वो हाल है हर एक बशर काँप रहा है
बेटा भी झुकाए हुए सर काँप रहा है
शौहर भी है नौकर की तरह कोने में दुबका
बेगम ने क़दम रक्खा तो घर काँप रहा है
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इश्क़ में सब्र आ गया 'आसिम'
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
ऐ शैख़ कंघा करना नहीं ज़ेब देता यूँ
मुशायरों में हवा हूट जो मुसलसल मैं
आशिक़ों की तो है भर-मार तिरे कूचे में
ये मंज़र देख कर बीवी ने काटा अपने शौहर को
दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
हाथ में पापड़ लिए बैठा था मैं
बैल क्या चीज़ है गधा क्या है
गधे के साथ इक लीडर का फोटो
मैं ने कहा गधे से मियाँ कुछ पढ़ो लिखो